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वृन्दावन भगवान श्री कृष्ण की क्रीड़ास्थली में स्व. श्रीहनुमान प्रसाद धानुकाजी की पुण्य स्मृतिमें उनके सुपुत्र श्री श्यामसुन्दरजी धानुका एवं श्री मदन मोहन जी धानुका ने 1 जुलाई 1996 में विद्यालय की स्थापना की जिनका उद्देश्य जनपद की बालिकाओें को भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत, आधुनिक तकनीकी ज्ञान, भारतीय संस्कारित शिक्षा एवंआधुनिक ज्ञान प्राप्त करवाना है।
यह पुनीतकार्य वृन्दावन की बालिकाओं के लिए वरदान के रूप में रहा। यहाँ छात्राऐं जीवन दर्श, चरित्र निर्माण, व्यक्तित्व विकास, अनुशासन, नैतिक एवं आध्यात्मिक शिक्षाग्रहण करस फलता का आसमान छूने को तत्पर हैं।
मथुराजनपद में लाल और सफेद पत्थर से राजस्थानी शैली में निर्मित विद्यालय भवन बहुत ही भव्य एवं आकर्षण का केन्द्र बिन्दु है। Digital Smart Classes अध्ययनार्थ कक्षा कक्ष एवं प्रयोगशालाऐं नवीन उपकरणों से अलंकृत हैं।वर्तमान में 1559 छात्राऐं कक्षा षष्ठ से द्वादश तक विद्यालय में शिक्षा रूपी तूलिका से जीवन रूपी कागज पर रंगभर रही हैं।विद्यालय में छात्राऐं लगभग 20-25 किमी. की परिधि से शिक्षा ग्रहण करने हेतु आती हैं। प्रबुद्ध प्रबन्धन व अनुभवी शिक्षक वृन्द के नेतृत्व में बालिकाओं का निर्माण राष्ट्रीय चरित्र, आत्मविश्वास और सेवाभावी जैसे गुणों को आत्मसातकर भावी जीवन के लिये किया जा रहा है। विगतवर्षों से विद्यालय द्वारा प्राप्त शिक्षा से छात्राऐं उन्नत समाज का निर्माण करने के लिये प्रयत्नशील हैं।
"भारतीय संस्कृति में शिक्षा को पवित्रतम प्रक्रिया माना गया है। गीता में श्रीकृष्ण ने ज्ञान को पवित्रतम घोषित किया है- ‘‘न हिज्ञानेनसदृशं पत्रिमिहविद्यते’’। भारतीय दर्शन में अज्ञान को अन्धकार और ज्ञान को प्रकाश माना गया है। शिक्षा एक प्रकाशहै।अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाना शिक्षा का प्रमुख कार्यहै। विद्या भारती के नेतृत्व और विद्यालय की प्रबन्ध समिति के मार्गदर्शन में विद्यालय प्रगति पथ परअग्रसर है। विद्यालय का लक्ष्य बालिकाओंको समसामयिक शिक्षा प्रदान करना है, जिसके लिए प्रबन्ध समिति द्वारा समग्र नवीनतम उपकरण, शिक्षण सामग्री एवंआधुनिक सुविधाओं की व्यवस्था विद्यालय में निरन्तर उपलब्ध करवाई जातीहै।"